सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा कानून के क्रियान्वयन पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल नहीं करने के लिए कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को फटकार लगाई है और पांच हजार रुपये का जुर्माना अदा करने का आदेश दिया।

कोर्ट ने राज्यों को दी चेतावनी
कोर्ट ने इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को चार सप्ताह का समय दिया है। साथ ही चेतावनी दी कि अगर वे रिपोर्ट दाखिल नहीं करते हैं, तो अगली बार जुर्माना दोगुना हो जाएगा। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 25 मार्च को निर्धारित की है।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और प्रसन्ना बी.वराले की पीठ ने सुनवाई के दौरान यह आदेश तब दिया जब याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद अपनी स्थिति रिपोर्ट दाखिल नहीं की।

कोर्ट ने कहा कि आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, ओडिशा, तेलंगाना, बंगाल और असम इन डिफाल्टर राज्यों में शामिल हैं। साथ ही दादर और नागर हवेली, दमन और दीव, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और लक्षद्वीप जैसे केंद्र शासित प्रदेशों ने भी अपनी रिपोर्ट नहीं दी है।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा-जुर्माना अगली बार दोगुना कर दिया जाएगा
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अगर आप रिपोर्ट नहीं दाखिल करते हैं, तो जुर्माना अगली बार दोगुना कर दिया जाएगा। यह मामला 2005 के घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के क्रियान्वयन को लेकर है और सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2024 में आदेश दिया था कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस कानून के कार्यान्वयन पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने पहले दो दिसंबर, 2024 को आदेश दिया था कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस कानून के कार्यान्वयन पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करनी चाहिए। 17 जनवरी को कोर्ट ने रिपोर्ट दाखिल करने की समय सीमा 14 फरवरी तक बढ़ा दी थी।

आश्रय गृहों की पर्याप्त नियुक्ति की मांग की गई
कोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के प्रविधानों का सही तरीके से पालन और कार्यान्वयन केवल केंद्र का नहीं, बल्कि संबंधित राज्य सरकारों का भी कर्तव्य है। याचिका में महिलाओं के लिए सुरक्षा अधिकारियों, सेवा प्रदाताओं और आश्रय गृहों की पर्याप्त नियुक्ति की मांग की गई है, ताकि इस कानून का सही तरीके से पालन हो सके।